gubbar
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क्या क्या सोचता हूँ ,पर सोच कर क्या हासिल,
बस अब यही सोचता हूँ,मैं कुछ भी न सोचा करू II
ख्वाब देखना अच्छा है ख्वाब से ही मिलती है मंजिले
मंजिल पाकर भी उदास हूँ सोचता हूँ मैं ख्वाब न देखा करूँ II
मोहब्बत हो गयी मेरी ,अब गुज़रे ज़माने की बात,
नफरतों की देहलीज़ पर अब, मोहब्बत की सोचा न करूँ II
लो फिर से आ गया चहकने- महकने का सुहाना मौसम,
दर्द है दिलो- दिमाग में इतना,अब गुनगुनाने की सोचा न करूं II
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